Kashmiri Neelam Stone History (Photo - Social Media)
Kashmiri Neelam Stone History: कभी-कभी कोई वस्तु केवल धातु या पत्थर नहीं होती, बल्कि यह समय, संस्कृति और सभ्यता का जीवंत दस्तावेज बन जाती है। कश्मीरी नीलम, जो आजकल चर्चा का विषय है, न केवल अपनी खूबसूरती और दुर्लभता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण भी इसे अनमोल माना जाता है। 13 मई, 2025 को आयरलैंड में होने वाली एक विशेष नीलामी में, 6.22 कैरेट का कश्मीरी नीलम जड़ा एक अद्वितीय अंगूठी बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाएगी। यह कोई साधारण गहना नहीं है, बल्कि विक्टोरियन युग की झलक और कश्मीरी विरासत का अनूठा संगम है। इसकी अनुमानित कीमत ₹1.35 करोड़ से ₹2.25 करोड़ के बीच है।
कश्मीर का रत्न: एक सांस्कृतिक धरोहर
कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यहां की वादियां, झीलें और बर्फ से ढकी चोटियां न केवल मनोहारी हैं, बल्कि इसकी धरती भी समृद्ध है। यह क्षेत्र एक समय दुनिया को सबसे दुर्लभ नीलम प्रदान करने के लिए जाना जाता था। कश्मीरी नीलम का नाम सुनते ही रत्न प्रेमियों के मन में विशेष भावनाएं जागृत होती हैं।
इन नीलमों की विशेषता उनका गहरा, मखमली नीला रंग है, जिसमें हल्की बैंगनी आभा होती है। यह रंग न केवल आंखों को आकर्षित करता है, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘रॉयल ब्लू’ के रूप में मान्यता प्राप्त है। विशेषज्ञों का कहना है, “कश्मीरी नीलम को शब्दों में नहीं, बल्कि अनुभव में समझा जा सकता है।”
कश्मीरी नीलम का संक्षिप्त इतिहास
कश्मीरी नीलम का इतिहास 19वीं सदी के अंत से शुरू होता है। 1881 में, किश्तवाड़ जिले की पैडर घाटी में भारी हिमस्खलन के बाद स्थानीय लोगों ने पहली बार इन नीलमों की खोज की। इसके बाद, 1882 से 1887 के बीच ब्रिटिश शासकों ने यहां खनन कार्य शुरू किया।
इस खनन के दौरान प्राप्त रत्नों की गुणवत्ता इतनी उच्च थी कि जल्द ही ‘कश्मीरी नीलम’ ने एक अलग पहचान बना ली। इसकी तुलना श्रीलंका या म्यांमार जैसे नीलम उत्पादक क्षेत्रों से नहीं की जा सकती थी। दुर्भाग्यवश, यह खदान जल्दी बंद हो गई और यह रत्न अत्यंत दुर्लभ हो गया।
नीलाम होने जा रही अंगूठी: कला और विरासत का संगम
जिस अंगूठी की चर्चा हो रही है, वह 1940 के दशक में बनाई गई एक यूरोपीय डिज़ाइन की अंगूठी है, जिसमें 6.22 कैरेट का कश्मीरी नीलम जड़ा हुआ है। हाल ही में प्रमाणित किया गया है कि यह नीलम प्राकृतिक रूप से बिना गर्म किए तैयार किया गया है। इस प्रकार के नीलम आजकल बहुत कम उपलब्ध हैं।
यह अंगूठी एक निजी फ्रांसीसी संग्रह का हिस्सा थी और इसे एडम्स ऑक्शनीर्स द्वारा ‘एडम्स फाइन ज्वैलरी और लेडीज वॉचेस’ नामक इवेंट में नीलामी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
नीलामी का महत्व
यह नीलामी ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार आयरलैंड में कश्मीरी नीलम की अंगूठी की नीलामी होगी। यह नीलम न केवल दुर्लभ है, बल्कि विक्टोरियन युग से जुड़ा प्रतीक भी है। इसकी प्रारंभिक अनुमानित कीमत ₹7.2 लाख से ₹10.8 लाख थी, लेकिन प्रमाणन के बाद यह बढ़कर ₹2.25 करोड़ तक पहुंच गई है। इसे लंदन के जेमोलॉजिकल सर्टिफिकेशन सर्विसेज (GCS) और स्विस जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (SSEF) द्वारा प्रमाणित किया गया है।
विक्टोरियन युग और भारतीय रत्नों का संबंध
ब्रिटिश राज के दौरान, विशेषकर विक्टोरियन युग में, भारत को "रत्नों की खान" माना जाता था। भारतीय हीरे, पन्ने, मोती और नीलम यूरोपीय राजघरानों में प्रमुखता से शामिल किए जाते थे। कश्मीरी नीलम को सबसे दुर्लभ और खास माना जाता था।
विक्टोरियन आभूषणों में जब ऐसे नीलम जड़े जाते थे, तो वे न केवल आभूषण होते थे, बल्कि सत्ता, सौंदर्य और संपन्नता के प्रतीक भी बन जाते थे। इस अंगूठी का यूरोपीय शैली में बनना यह दर्शाता है कि उस समय भारत के रत्न वैश्विक फैशन और ज्वैलरी डिज़ाइन में कैसे एकीकृत हो चुके थे।
कश्मीरी नीलम की विशेषताएँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
यह नीलम कोरंडम परिवार का सदस्य है। इसमें कोई थर्मल ट्रीटमेंट नहीं किया गया है, यानी यह प्राकृतिक अवस्था में ही आकर्षक है। गहरे नीले रंग के साथ मखमली बनावट इसे विशिष्ट बनाती है।
इसकी पारदर्शिता और रोशनी को परावर्तित करने की क्षमता बेहद उच्च स्तर की होती है। कश्मीरी नीलम से जड़े गहनों में एक ‘ग्लो’ होता है जो अन्य रत्नों से अलग होता है।
भारतीय संस्कृति में रत्नों का महत्व
भारतीय संस्कृति में रत्नों का विशेष स्थान रहा है। नवग्रहों के अनुसार रत्न धारण करने की परंपरा, आयुर्वेद में रत्नों की औषधीय उपयोगिता और वास्तुशास्त्र में इनके उपयोग यह सब दिखाते हैं कि भारत में रत्न केवल सौंदर्य की वस्तु नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी रखते हैं। कश्मीरी नीलम विशेष रूप से शनि ग्रह से जुड़ा हुआ माना जाता है और इसे धारण करने वाले को साहस, स्थिरता और सफलता प्राप्त होती है। हालांकि, ऐसे रत्नों को बिना विशेषज्ञ सलाह के धारण करना मना किया जाता है क्योंकि इनकी ऊर्जा शक्तिशाली होती है।
संरक्षण और चुनौतियाँ
कश्मीरी नीलम की बढ़ती लोकप्रियता और कीमत के साथ नकली रत्नों का बाजार भी फैल रहा है। इसलिए प्रमाणन संस्थानों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि सरकार और रत्न उद्योग उचित संरक्षण और खनिज नीति बनाए, तो भविष्य में भारत फिर से ऐसे रत्नों का उत्पादन कर सकेगा। इस दुर्लभ अंगूठी की नीलामी केवल एक व्यापारिक लेनदेन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और कलात्मक घटना है। यह दर्शाती है कि भारत की धरोहरें आज भी दुनिया को चकित करने की क्षमता रखती हैं। 13 मई को जब यह अंगूठी नीलामी में जाएगी, तो वह क्षण केवल कलेक्टरों और ज्वैलरी प्रेमियों के लिए नहीं, बल्कि भारतीय विरासत को सम्मानित करने वाला भी होगा।
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